9 जून 2012
पटना। बिहार में लगभग दो दशकों से हर साल गर्मियों के मौसम में अज्ञात बीमारी से बच्चों की मौत होती है और इस साल भी यह सिलसिला जारी है जबकि सरकार इलाज तो दूर इस बीमारी की पहचान करने में भी विफल रही है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग दावा कर रहा है कि उसने इससे निपटने के लिए पूरे इंतजाम किए हैं लेकिन हकीकत यह है कि पिछले 15 दिनों में इस बीमारी से अब तक 73 बच्चे काल के गाल में समा गए। अपुष्ट खबरों के मुताबिक यह संख्या इससे कहीं अधिक है।
इस अज्ञात बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित मुजफ्फरपुर जिले में पिछले 12 दिनों में 30 बच्चों की मौत हो चुकी है। जिले के सिविल सर्जन डॉ़ ज्ञानभूषण ने शुक्रवार को बताया कि अब तक इस बीमारी से पीड़ित 81 बच्चे विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हुए हैं जिसमें 30 बच्चों की मौत हो गई है।
इधर, गया जिले में भी नौ बच्चों की मौत हो गई है। गया के सिविल सर्जन डॉ़ दिलीप कुमार कहते हैं, "इनमें अधिकांश बच्चे हालत अत्यंत खराब होने पर आते हैं जिस कारण उन्हें बचा पाना असम्भव होता है।"
पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल ( पीएमसीएच ) में भी अब तक इस अज्ञात बीमारी से 34 बच्चों की मौत हो चुकी है। पीएमसीएच के शिशु रोग वार्ड के प्रमुख संजाता राय चौधरी ने कहा है, "पिछले 15 दिनों में यहां अज्ञात बीमारी से पीड़ित 80 से 85 बच्चे भर्ती हुए, जिसमें से 34 की मौत हो गई है। ये बच्चे पटना, गया, मुजफ्फरपुर, नवादा और छपरा सहित राज्य के कई जिलों से सम्बधित हैं।"
उन्होंने बताया कि इस बीमारी की जांच जारी है, परंतु सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि यह 'एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिन्ड्रोम' हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह जापानी इंसेफेलाइटिस (मस्तिष्क ज्वर) नहीं है।
इधर, पटना के जाने-माने चिकित्सक डॉ़ निशीन्द्र गांवों में इलाज मुहैया कराने की आवश्यकता पर बल देते हैं। कई प्रभावित गांवों का दौरा करने वाले निशीन्द्र बताते हैं, "45 डिग्री सेल्सियस तापमान में बच्चे गांव में गंदगी वाले स्थानों पर बिना कपड़ों के घूमते हैं।" उन्होंने प्रश्न किया कि आज कितने गांवों में डीडीटी का छिड़काव किया जाता है? उन्होंने कहा कि इस बीमारी का मूल कारण मच्छर, गंदगी और कुपोषण है।
सत्तारुढ़ गठबंधन की घटक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बिहार इकाई के अध्यक्ष और चिकित्सक सी़ पी़ ठाकुर कहते हैं कि यह बीमारी 80 के दशक से प्रत्येक वर्ष गर्मी में ग्रामीण क्षेत्रों में अपना कहर बरपाती है।
स्वास्थ्य विभाग के तैयारी में विफल रहने के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि बात सफलता एवं असफलता की नहीं है इसे दूर करने के लिए सबको आगे आना होगा। अब तक इस बीमारी का नाम भी पता नहीं चलने पर हालांकि ठाकुर ने कहा कि देश में जांच की सुविधा उपलब्ध न होने पर नमूने को विदेश भेजा जा सकता है और वह इस विषय में स्वास्थ्य विभाग से खुद बात करेंगे।
स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव अमरदीप सिन्हा बताते हैं कि मुजफ्फरपुर और गया के मेडिकल कॉलेजों में इस बीमारी से निपटने के लिए चिकित्सकों, दवाएं और एम्बुलेंस तक की व्यवस्था की गई है। उन्होंने कहा, "विभाग इस रहस्यमयी बीमारी से निपटने की हरसम्भव कोशिश कर रहा है। सरकार 11 जिलों को ध्यान में रखकर व्यापक स्तर पर टीकाकरण अभियान चला रही है।"
सिन्हा के मुताबिक केंद्र सरकार की अनुसंधान टीम पूरे वर्ष यहां रहकर इस बीमारी का अध्ययन करेगी।
उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष भी ऐसी ही बीमारी से गया और मुजफ्फरपुर जिले में 150 से अधिक बच्चों की मौत हुई थी जबकि वर्ष 2010 में 35 और वर्ष 2009 में 50 बच्चों की मौत हो गई थी।
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